Thursday, April 23, 2020


अमर शहीद पंडित रामप्रसाद 'बिस्मिल' का जन्म सन १८९७ में शाहजहांपुर, उत्तरप्रदेश में हुआ था, उनके पिता का नाम मुरलीधर उपाध्याय था, और उनको फंसी कि सजा(उनके खुद के शब्दों में जयमाला)  १८ दिसंबर १९२७ को गोरखपुर में पहनाई गयी थी, ये सजा उन्हें काकोरी रेल डकैती कांड में दी गयी थी, जिसमे कि उनके साथ अन्य तीन अशफाकउल्ला खां, रोशन सिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को भी फंसी कि सजा हुई थी, बिस्मिल का पूरा जीवन देश सेवा में गुजरा और जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी जीवनी भी लिखी थी! 
अशफाकउल्ला खां और बिस्मिल दो जिस्म एक जान कि तरह थे, इनकी दोस्ती आगे चलकर हिन्दु मुस्लिम एकता कि मिसाल बन गयी थी! 
प्रस्तुत है 'बिस्मिल' कि लिखी कुछ अमर रचनाएँ..............
उनकी इस रचना ने नवयुवकों के दिलों में तूफ़ान ला दिया था!

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्क़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में!


जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी जीवनी में लिखा था कि "मुझे तो इस कोठरी में बड़ा आनन्द आ रहा है । मेरी इच्छा थी कि किसी साधु की गुफा पर कुछ दिन निवास करके योगाभ्यास किया जाता । अन्तिम समय वह इच्छा भी पूर्ण हो गई । साधु की गुफा न मिली तो क्या, साधना की गुफा तो मिल गई । इसी कोठरी में यह सुयोग प्राप्‍त हो गया कि अपनी कुछ अन्तिम बात लिखकर देशवासियों को अर्पण कर दूं । सम्भव है कि मेरे जीवन के अध्ययन से किसी आत्मा का भला हो जाए । बड़ी कठिनता से यह शुभ अवसर प्राप्‍त हुआ"


महसूस हो रहे हैं बादे फना के झोंके |

खुलने लगे हैं मुझ पर असरार जिन्दगी के ॥
बारे अलम उठाया रंगे निशात देता ।
आये नहीं हैं यूं ही अन्दाज बेहिसी के ॥
वफा पर दिल को सदके जान को नजरे जफ़ा कर दे ।
मुहब्बत में यह लाजिम है कि जो कुछ हो फिदा कर दे ॥


अब तो यही इच्छा है -
बहे बहरे फ़ना में जल्द या रव लाश 'बिस्मिल' की ।
कि भूखी मछलियां हैं जौहरे शमशीर कातिल की ॥
समझकर कूँकना इसकी ज़रा ऐ दागे नाकामी ।
बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजड़े हुए दिल से ॥


सताये तुझको जो कोई बेवफा, 'बिस्मिल' ।
तो मुंह से कुछ न कहना आह ! कर लेना ॥
हम शहीदाने वफा का दीनों ईमां और है ।
सिजदे करते हैं हमेशा पांव पर जल्लाद के 

यदि देश-हित मरना पड़े
मुझको सहस्रों बार भी
तो भी न मैं इस कष्‍ट को निज ध्यान में लाऊँ कभी ।
हे ईश भारतवर्ष में शत बार मेरा जन्म हो,
कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो ॥


मरते 'बिस्मिल' 'रोशन' 'लहरी' 'अशफाक' अत्याचार से ।

होंगे पैदा सैंकड़ों इनके रुधिर की धार से ॥ 

इस अमर शहीद को मेरा कोटि कोटि नमन! जय हिंद!

Thursday, October 14, 2010

हे ईश, भारत वर्ष में शत बार मेरा जन्म हो

अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की कलम से...........
यदि देश हित मरना पड़े मुझको सहस्रों बार भी,
तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाऊं कभी !
हे ईश, भारत वर्ष में शत बार मेरा जन्म हो,
कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो !
मरते 'बिस्मिल' रोशन लहरी अशफाक अत्याचार से,
होंगे पैदा सैकड़ों उनके रुधिर की धार से-
उनके प्रबल उद्योग से उद्धार होगा देश का,
तब नाश होगा सर्वदा दुःख शोक के लवलेश का! 

Friday, August 20, 2010

एक बिहारी डकैत जो दिलों पर डाका डालता है

एक बिहारी भैया ब्लॉगजगत में आये और चोरों की तरह लोगों के दिलों में सेंध लगाने लगे, पता ही नहीं चला कि कब हमारे भी दिल में समा गए,  जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ सलिल वर्मा (चला बिहारी ब्लॉगर बनने) की, पूरे ब्लॉगजगत में उन्होंने एक बहुत ही सुखद पारिवारिक माहौल बना दिया है, मैं भी उनसे मिला नहीं हूँ ना ही कभी बात हुई है लेकिन फिर भी लगता है जैसे हम एक ही परिवार के हैं, कुछ पंक्तियाँ उनके लिए.......


बहुत शातिर हैं वो
चुपके से 
दिलों में सेंध लगाते हैं  
बिन आहट के,


आप उन्हें 
डकैत भी कह सकते हैं 
वो दिलों पे 
डाका डालते हैं अक्सर,


या शब्दों का जादूगर 
कह लो उन्हें
उनके शब्द 
तीर की तरह उतर जाते हैं 
दिलों में,


वो फैला रहे हैं 
परिवारवाद यहाँ, 
मगर हाँ 
उनके परिवार में हैं 
आप, मैं और पूरा ब्लॉगजगत,


वैसे सलिल कहते हैं उन्हें 
वो सिखा रहे हैं हमें 
अपनत्व क्या है
और दिल जीतने का हुनर 
किसे कहते हैं!
http://chalaabihari.blogspot.com/

Saturday, August 14, 2010

जिन्ना को उनका पाकिस्तान मिला नेहरु को हिन्दुस्तान

क्या नहीं सोचा था 
नेहरु और जिन्ना ने
कि ये कीमत चुकानी होगी 
आज़ादी और विभाजन की,

नालियों में बह रहा 
बेकसूरों का रक्त था
और वो बेकसूर नहीं जानते थे 
कि सरहद किसे कहते हैं
और आज़ादी क्या है,

वो नहीं जानते थे 
नेहरु और जिन्ना को,

वो तो मार दिए गए
हिन्दू और मुसलमान होने के 
अपराध में,

मरने से पहले देखे थे उन्होंने
अपनी औरतों के स्तन कटते हुए
अपने जिंदा बच्चों को 
गोस्त कि तरह आग में पकते हुए,

दुधमुहे बच्चे
अपनी मरी हुई माँ की 
कटी हुई छातियों से बहते रक्त को 
सहमे हुए देख रहे थे 
और उसकी बाहों को 
इस उम्मीद में खींच रहे थे 
कि बस अब वो उसे गोद में उठा लेगी, 

माएँ अपनी जवान बेटियों के
गले घोट रही थी 
उन्हें बलात्कार से बचाने के लिए,

बेरहमी कि हदों को तोड़कर 
इंसानियत को रौंदा गया,

पर एक सवाल आज भी 
अपनी जगह कायम है
कि इस भीषण त्रासदी का 
ज़िम्मेदार कौन???

जिन्ना को 
उनका पाकिस्तान मिला
नेहरु को 
हिन्दुस्तान,

परन्तु बाकी बचे 
चालीस करोड़ लोगों को
क्या मिला???

टुकड़ों में बंटा
लहुलुहान हिन्दुस्तान!!!

Wednesday, August 11, 2010

होगा एक नए भारत का निर्माण!



ये है आज का भारत  
नरभक्षी बन चुकी है 
व्यवस्था यहाँ 
भेड़ की खाल पहने
घूम रहे हैं 
भेडियों के समूह,


मेमनों को
अपने नुकीले
दांतों में दबोच
रक्त चूस रहे हैं बेखौफ,


लेकिन हम तो शायद
चुप ही रहेंगे
सहने का सामर्थ्य है
सहेंगे,


मगर मित्र
एक दिन अवश्य
ज्वालामुखी फटेगा
और गर्म लावा बहेगा,


या फिर
धरती कांपेगी
और वो दीवारें
जिनकी नीव कमजोर है
ढह जाएंगी,


और ये
नुकीले दांत वाले भेडिये
दम तोड़ रहे होंगे
दीवारों के मलबे तले,


एक दिन हमारी निद्रा
अवश्य टूटेगी
और हमारी आँखे
अंगार उगलेंगी,


और तब हम
प्रगति के पथ पर उगे
काँटों को
कुचलेंगे,


फिर लम्बी रात के बाद
एक नयी सुबह होगी
और हम
खुली हवा में
ताजगी भरी सांस लेंगे,


और होगा एक नए भारत का निर्माण! 

Tuesday, August 10, 2010

वो कहते हैं कश्मीर दे दो

वो कहते हैं 
कश्मीर दे दो
बड़े नादान हैं 
नहीं जानते
कि जिस्म से रूह 
नहीं मांगते,


हमारी धडकनों में 
बसता है कश्मीर
हमारी रगों में 
बहता है कश्मीर
हमारी साँसों में 
बसा है कश्मीर,


हिंद की
जागीर है कश्मीर! 

Friday, July 23, 2010

एक मिट जाने कि हसरत, अब दिले-बिस्मिल में है......

फाँसी के लिए जाते समय बहुत जोर से 'वन्दे मातरम' और 'भारत माता कि जय' का नारा लगाते हुए अमर शहीद रामप्रसाद  बिस्मिल कि कही कुछ पंक्तियाँ.......


मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे 
बाकी न मैं रहूँ, न मेरी आरजू रहे!
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्रेयार, तेरी जुस्तजू रहे!


फंसी के तख्ते पर खड़े होकर उन्होंने ये शेर पढ़ा......


अब न अहले वलवले हैं
और न अरमानों कि भीड़!
एक मिट जाने कि हसरत,
अब दिले-बिस्मिल में है! 
 
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