एक बिहारी भैया ब्लॉगजगत में आये और चोरों की तरह लोगों के दिलों में सेंध लगाने लगे, पता ही नहीं चला कि कब हमारे भी दिल में समा गए, जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ सलिल वर्मा (चला बिहारी ब्लॉगर बनने) की, पूरे ब्लॉगजगत में उन्होंने एक बहुत ही सुखद पारिवारिक माहौल बना दिया है, मैं भी उनसे मिला नहीं हूँ ना ही कभी बात हुई है लेकिन फिर भी लगता है जैसे हम एक ही परिवार के हैं, कुछ पंक्तियाँ उनके लिए.......
बहुत शातिर हैं वो चुपके से दिलों में सेंध लगाते हैं बिन आहट के,
आप उन्हें डकैत भी कह सकते हैं वो दिलों पे डाका डालते हैं अक्सर,
या शब्दों का जादूगर कह लो उन्हें उनके शब्द तीर की तरह उतर जाते हैं दिलों में,
वो फैला रहे हैं परिवारवाद यहाँ, मगर हाँ उनके परिवार में हैं आप, मैं और पूरा ब्लॉगजगत,
भाई नीलेश अभी तुमने मुझे जाना नहीं कौन हूँ मैं तुम्हें मालूम नहीं एक रद्दी का कोई टुकड़ा था मैं काग़ज़ का तुमने उस रद्दी को इक शक्ल दे दी भाई की कैसे अब मैं सम्भाल पाउँगा इस बोझ को इक रिश्ते के भाई मुझको फ़लक पे तुमने बिठाया तो है देखो मुझको कभी ज़मीं पे गिरा मत देना सोच लो फिर से कोई बात ग़लत है तो नहीं मैं तो इक अदना सा इंसान हूँ फ़रिश्ता नहीं डाके मैंने नहीं डाले हैं कभी दिल पे मगर देके दस्तक हरेक दिल पे ही खुलवाया है ये दर मैंने दिल तो वैसे ही बड़ा होता है नाज़ुक भैया सेंध मारो तो टूट कर ये बिखर जाता है सेंध मारो तो टूट कर ये बिखर जाता है!!
नीलेश जी आप इन्हें चोर कहकर इनकी तौहीन मत करिए। अर भैया ये तो बातों के डकैत हैं। इन्होंने अपना नाम खडगसिंह रख लिया है। और हमारी गुल्लक लूटने जब तब चले आते हैं। और हमें कहते हैं बाबा भारती । वैसे अपुन भी इनकी गैंग में है।
नीलेश भाई, आपके ब्लॉग को मैं follow कर रहा हूँ पर पता नहीं क्यों आपकी नयी पोस्टो की जानकारी मेरे dashboard पर अपडेट नहीं होती है !! अगर हो सके तो इस विषय पर कुछ मार्गदर्शन करें !
यह बिहारी मेरे दिल का भी चोर है और यह बात रपट के तौर पर नहीं वरन सनद के तौर पर ली जाये.
आभासी जगत और वास्तविक जगत अपने तो दोनों जहान में जीना मुहाल किये हुए है ये दिल का चोर. पर जाने क्या है कि इस चोर के लिये फिर भी यही निकलता है दिल से कि :
आप जिनके करीब होते हैं वो बड़ॆ खुशनसीब होते हैं
आपकी कविता की डोरी नें भी खूब बाधां है, इस पक्के चोर को. -चैतन्य.
12 comments:
सलिल जी के बारे में जान अच्छा लगा.. बिहारी बाबू का नाम भी पता चला.. देखा तो कई जगह है उन्हें.. कविता भी बढ़िया है नीलेश जी..
भाई नीलेश अभी तुमने मुझे जाना नहीं
कौन हूँ मैं तुम्हें मालूम नहीं
एक रद्दी का कोई टुकड़ा था मैं काग़ज़ का
तुमने उस रद्दी को इक शक्ल दे दी भाई की
कैसे अब मैं सम्भाल पाउँगा इस बोझ को इक रिश्ते के
भाई मुझको फ़लक पे तुमने बिठाया तो है
देखो मुझको कभी ज़मीं पे गिरा मत देना
सोच लो फिर से कोई बात ग़लत है तो नहीं
मैं तो इक अदना सा इंसान हूँ फ़रिश्ता नहीं
डाके मैंने नहीं डाले हैं कभी दिल पे मगर
देके दस्तक हरेक दिल पे ही खुलवाया है ये दर मैंने
दिल तो वैसे ही बड़ा होता है नाज़ुक भैया
सेंध मारो तो टूट कर ये बिखर जाता है
सेंध मारो तो टूट कर ये बिखर जाता है!!
नीलेश जी आप इन्हें चोर कहकर इनकी तौहीन मत करिए। अर भैया ये तो बातों के डकैत हैं। इन्होंने अपना नाम खडगसिंह रख लिया है। और हमारी गुल्लक लूटने जब तब चले आते हैं। और हमें कहते हैं बाबा भारती । वैसे अपुन भी इनकी गैंग में है।
वाकई दिल बहुत नाज़ुक है.
एक ठो रपट हमरी भी लिखी जाए ...........हम को भी लूट चुके है यह बिहारी बाबु ! लेकिन लूटने के बाद अपनी टोली में शामिल भी कर लिए फटाक से ना !!
नीलेश भाई, आपके ब्लॉग को मैं follow कर रहा हूँ पर पता नहीं क्यों आपकी नयी पोस्टो की जानकारी मेरे dashboard पर अपडेट नहीं होती है !! अगर हो सके तो इस विषय पर कुछ मार्गदर्शन करें !
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
आदरणीय सलिल साहब से मिल कर ख़ुशी हुई ....कविता भी बहुत अच्छी है !
आभार
बूढी पथराई आँखें .....रानीविशाल
यह बिहारी मेरे दिल का भी चोर है और यह बात रपट के तौर पर नहीं वरन सनद के तौर पर ली जाये.
आभासी जगत और वास्तविक जगत अपने तो दोनों जहान में जीना मुहाल किये हुए है ये दिल का चोर. पर जाने क्या है कि इस चोर के लिये फिर भी यही निकलता है दिल से कि :
आप जिनके करीब होते हैं
वो बड़ॆ खुशनसीब होते हैं
आपकी कविता की डोरी नें भी खूब बाधां है, इस पक्के चोर को.
-चैतन्य.
bahoot badia.....
salis sahab ke bare me janane ko itna kuchh mila
realy he is a nice personality.
सलिल साहब से मिल कर ख़ुशी हुई ....
बिहारी बाबू की तो हर अदा निराली...आभार इस परिचय का भी.
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