अमर शहीद अशफाकउल्ला खां 'हसरत' उपनाम से कविताएँ लिखते थे, फाँसी से कुछ घंटे पहले लिखी उनकी कुछ रचनाएँ.......
(१)
कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यहरख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफ़न में/
ए पुख्तकार उल्फत हुसियार, डिग ना जाना,
मराज आशकां है इस दार और रसन में//
मौत और ज़िन्दगी है दुनिया का सब तमाशा,
फरमान कृष्ण का था, अर्जुन को बीच रन में//
अफ़सोस क्यों नहीं है वह रूह अब वतन में?
जिसने हिला दिया था दुनिया को एक पल में,
सैयाद जुल्मपेशा आया है जबसे 'हसरत',
है बुलबुले कफस में जागो जगन चमन में//
(२)
न कोई इंग्लिश है न कोई जर्मन,
न कोई रशियन है न कोई तुर्की/
मिटाने वाले हैं अपने हिंदी,
जो आज हमको मिटा रहे हैं/
जिसे फ़ना वह समझ रहे हैं,
बका का राज़ इसी में मुजमिर/
नहीं मिटाने से मिट सकेंगे,
यों लाख हमको मिटा रहे हैं/
खामोश 'हज़रत' खामोश 'हसरत'
अगर है जज़बा वतन का दिल में/
सजा को पहुचेंगे अपनी बेशक,
जो आज हमको सता रहे हैं/
(३)
बुजदिलो को ही सदा मौत से डरते देखा,
गो कि सौ बार उन्हें रोज़ ही मरते देखा/
मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा,
मौत को एक बार जब आना है तो डरना क्या है,
हम सदा खेल ही समझा किये, मरना क्या है/
वतन हमेशा रहे शादकाम और आज़ाद,
हमारा क्या है, अगर हम रहे, रहे न रहे//
अमर शहीद अशफाकउल्ला खां 'हसरत'
जन्म- २२ अक्तूबर १९००
शहादत- १९ दिसंबर १९२७
साभार- भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन का इतिहास ( मन्मथनाथ गुप्त)