Friday, May 28, 2010

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है..................


अमर शहीद पंडित रामप्रसाद 'बिस्मिल' का जन्म सन १८९७ में शाहजहांपुर, उत्तरप्रदेश में हुआ था, उनके पिता का नाम मुरलीधर उपाध्याय था, और उनको फंसी कि सजा(उनके खुद के शब्दों में जयमाला)  १८ दिसंबर १९२७ को गोरखपुर में पहनाई गयी थी, ये सजा उन्हें काकोरी रेल डकैती कांड में दी गयी थी, जिसमे कि उनके साथ अन्य तीन अशफाकउल्ला खां, रोशन सिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को भी फंसी कि सजा हुई थी, बिस्मिल का पूरा जीवन देश सेवा में गुजरा और जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी जीवनी भी लिखी थी! 
अशफाकउल्ला खां और बिस्मिल दो जिस्म एक जान कि तरह थे, इनकी दोस्ती आगे चलकर हिन्दु मुस्लिम एकता कि मिसाल बन गयी थी! 
प्रस्तुत है 'बिस्मिल' कि लिखी कुछ अमर रचनाएँ..............
उनकी इस रचना ने नवयुवकों के दिलों में तूफ़ान ला दिया था!

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्क़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में!









जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी जीवनी में लिखा था कि "मुझे तो इस कोठरी में बड़ा आनन्द आ रहा है । मेरी इच्छा थी कि किसी साधु की गुफा पर कुछ दिन निवास करके योगाभ्यास किया जाता । अन्तिम समय वह इच्छा भी पूर्ण हो गई । साधु की गुफा न मिली तो क्या, साधना की गुफा तो मिल गई । इसी कोठरी में यह सुयोग प्राप्‍त हो गया कि अपनी कुछ अन्तिम बात लिखकर देशवासियों को अर्पण कर दूं । सम्भव है कि मेरे जीवन के अध्ययन से किसी आत्मा का भला हो जाए । बड़ी कठिनता से यह शुभ अवसर प्राप्‍त हुआ"





महसूस हो रहे हैं बादे फना के झोंके |
खुलने लगे हैं मुझ पर असरार जिन्दगी के ॥
बारे अलम उठाया रंगे निशात देता ।
आये नहीं हैं यूं ही अन्दाज बेहिसी के ॥
वफा पर दिल को सदके जान को नजरे जफ़ा कर दे ।
मुहब्बत में यह लाजिम है कि जो कुछ हो फिदा कर दे ॥



अब तो यही इच्छा है -





बहे बहरे फ़ना में जल्द या रव लाश 'बिस्मिल' की ।
कि भूखी मछलियां हैं जौहरे शमशीर कातिल की ॥
समझकर कूँकना इसकी ज़रा ऐ दागे नाकामी ।
बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजड़े हुए दिल से ॥



सताये तुझको जो कोई बेवफा, 'बिस्मिल' ।
तो मुंह से कुछ न कहना आह ! कर लेना ॥
हम शहीदाने वफा का दीनों ईमां और है ।
सिजदे करते हैं हमेशा पांव पर जल्लाद के 






यदि देश-हित मरना पड़े मुझको सहस्रों बार भी
तो भी न मैं इस कष्‍ट को निज ध्यान में लाऊँ कभी ।
हे ईश भारतवर्ष में शत बार मेरा जन्म हो,
कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो ॥




मरते 'बिस्मिल' 'रोशन' 'लहरी' 'अशफाक' अत्याचार से ।


होंगे पैदा सैंकड़ों इनके रुधिर की धार से ॥ 

इस अमर शहीद को मेरा कोटि कोटि नमन! जय हिंद!

17 comments:

Ra said...

निलेश भाई जो आपने शुरुआत में लिखा है ...वो जाना पहचाना ही लगा ...पर जो अंत में लिखा है उसकी जानकारी हमें नहीं थी ..बहुत ही रोचक है ....ऐसी जानकारी जो हर भारतवासी को होनी चाहिए ...

Ra said...

देश के सभी शहीद सपूतो के साथ आप भी आभार के हक़दार है जो ये पेशकश लाये ......भारत माँ के चरणों पर शीश झुकाने वाले हर भारतवासी को हमारा जय हिंद..जय ..भारत ,,,वन्दे मातरम्

डा० अमर कुमार said...

कृपया यहाँ भी देखें
काकोरी के शहीद

viveksharma(nalayak) said...

बहुत सुन्दर पोस्ट ! वन्देमातरम!

अरुणेश मिश्र said...

अति प्रशंसनीय ।

अरुणेश मिश्र said...

अति प्रशंसनीय ।

शिवम् मिश्रा said...

वन्दे मातरम् |

दिलीप said...

sir bismil ki aatmkatha padhi..ant tak aate aate badi hi maarmik ho gayi...unke baad unki maata ki jo avastha thi...usne rula diya...

बाल भवन जबलपुर said...

भाई साहब
सच अत्यावश्यक पोस्ट है

एक बेहद साधारण पाठक said...

बहुत सुन्दर पोस्ट ! वन्देमातरम!

Tarun / तरुण / தருண் said...

Bismil ki shaayari hi shaayari hai baaki sab laffabaaji hai , ye unakaa hi lahu hai jo aaj hindostaan ki rago me doud rahaa hai
Jai Hind ! Jay Bismil!

Deepak said...

"सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैं और रामप्रसाद बिस्मिल ने उनका शेर फांसी के फंदे पर झूलने के समय कहा था।

"मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे, बाकी न मैं रहूँ, न मेरी आरजू रहे। जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे, तेरा ही ज़िक्रेयार, तेरी जुस्तजू रहे" ये उन्होंने फांसी लगने के एक रात पहले जेल की दीवारों पे लिखा था.

"मरते 'बिस्मिल' 'रोशन' 'लहरी' 'अशफाक' अत्याचार से।
होंगे पैदा सैंकड़ों इनके रुधिर की धार से॥" ये उनकी आत्मकथा की अंतिम लाइन है जिसे उन्होंनेफाँसी लगने के 3 दिन पहले 16 दिसम्बर १९२७ को लिखा था.

Anonymous said...

bharat mata ki jaiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii........

Anonymous said...

jai hind..........

nitin khandelwal said...

jai hind

SUDHIR RAI said...

wahhh....dil kahata hai un sahido ke naam bas ek baar....dil karata hai un sahido ke naam hi bas bar bar.....?

Unknown said...

गज़ब का व्यक्ति
अमर क्रन्तिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल आर्य

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