शहीदों की चिताओ पर
अब कहाँ लगते हैं मेले
आंसू सूख गए हैं
उनके भी
छोड़ गए थे जिन्हें
वो अकेले,
ऐसा कोई सिरफिरा
अब नहीं यहाँ
जो भारत को कहें माँ
और लुटा दे उस पे जां,
शहीद आत्महत्या के डर से
अब पुनर्जन्म नहीं लेते,
कोई देशभक्त
कैसे जिंदा रहेगा यहाँ
अपने ही भोंक रहे हैं खंजर
अपनों के जहाँ,
भूल चुके हम
भगत सिंह और सुभाष की बातें
गाँधी की तस्वीर
जेब में लिए फिरते हैं,
फिरंगियों से
लड़ते थे जो कभी
आज खुद
फिरंगी बने फिरते है,
शहीदों की चिताओं पर
अब कहाँ लगते हैं मेले
हम तो खुद मर चुके हैं
ये तो लाशो के मेले हैं!
Monday, June 14, 2010
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19 comments:
भाई पोस्ट तो बहुत अच्छी लिखी है... मगर यह आज़ाद हिन्दुस्तान है ना. आज का हिन्दुस्तान... भीड तंत्र बन चुका हमारा हिन्दुस्तान..
बहुत अच्छी प्रस्तुति...
nice
वन्दे मातरम्.... बहुत अच्छी पोस्ट .....
bahut badhiya prastuti...
shaheedon ki chitaon par nahi lagte kahin mele...
buton pe kauve baithe hain yahi baaki nisha hai ab...
बहुत सुन्दर और संवेदनशील!
राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत सुन्दर रचना
हम तो खुद मर चुके हैं
ये तो लाशो के मेले हैं!
-बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!
उम्दा रचना....
दादा कविता शानदार है। पर भाई मां कहने वालों की कमी नहीं है। बस एकजुट नहीं हो पा रहे हम। करोडो़ हैं जो सीने पर जान देने को हरदम तैयार हैं मां के लिए। करगिल बीते ज्यादा दिन नहीं बीते। पर हां जाने देने की जगह दुश्मन की जान लेने से जंग जीतेंगे, ये समझना होगा। मां के बेटे जाग रहे हैं, वक्त आने पर दिखा देंगे ऐ आसमां, अभी से क्या बताएं।......
कडुवे सच को अभिव्यक्त करती एक उम्दा प्रस्तुति
आज के भ्रष्टाचार पर तीखा कटाक्ष है
शहीद आत्महत्या के डर से
अब पुनर्जन्म नहीं लेते, ...
Beautiful creation !
bahut sundar abhivykti
samy kee waastviktaa ko aapne udghaatit kiyaa hai .congratulation
Pichle 60 varshon se upje dard aur kadhwahat ki pariniti hai yah rachna.shubkamnayen.
bahut sunder.
वन्दे मातरम्! बहुत खूब्!
yaar bate achi lagti hai par adhi janta anpadh hai
aur desh apna mahan hai
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