फाँसी के लिए जाते समय बहुत जोर से 'वन्दे मातरम' और 'भारत माता कि जय' का नारा लगाते हुए अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल कि कही कुछ पंक्तियाँ.......
मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे
बाकी न मैं रहूँ, न मेरी आरजू रहे!
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्रेयार, तेरी जुस्तजू रहे!
फंसी के तख्ते पर खड़े होकर उन्होंने ये शेर पढ़ा......
अब न अहले वलवले हैं
और न अरमानों कि भीड़!
एक मिट जाने कि हसरत,
अब दिले-बिस्मिल में है!
Friday, July 23, 2010
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7 comments:
"एक मिट जाने कि हसरत,
अब दिले-बिस्मिल में है!"
अमर शहीद की याद दिलाने के लिए आपका आभार ....... नीलेश भाई !
अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल को सत-सत नमन
अमर शहीद बिस्मिल जी को मेरा शत शत नमन और श्रधांजलि!
अब न अहले-वलवले हैं.....
काश हम इन शहादतों की लाज ही रख लेते !
प्रणम्य शहीद का स्मरण भी प्रणम्य है . नीलेश जी ।
neelesh ji
your poems are always having a message for socity and indivudals .
congratulation
Rakesh
Nilesh ji....AApki is post ke liye main aapko dil se Dhanaybaad deta haun.
अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल ko yaad karke aankhe num ho gai.
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