ये है आज का भारत
नरभक्षी बन चुकी है व्यवस्था यहाँ
भेड़ की खाल पहने
घूम रहे हैं
भेडियों के समूह,
मेमनों को
अपने नुकीले
दांतों में दबोच
रक्त चूस रहे हैं बेखौफ,
लेकिन हम तो शायद
चुप ही रहेंगे
सहने का सामर्थ्य है
सहेंगे,
मगर मित्र
एक दिन अवश्य
ज्वालामुखी फटेगा
और गर्म लावा बहेगा,
या फिर
धरती कांपेगी
और वो दीवारें
जिनकी नीव कमजोर है
ढह जाएंगी,
और ये
नुकीले दांत वाले भेडिये
दम तोड़ रहे होंगे
दीवारों के मलबे तले,
एक दिन हमारी निद्रा
अवश्य टूटेगी
और हमारी आँखे
अंगार उगलेंगी,
और तब हम
प्रगति के पथ पर उगे
काँटों को
कुचलेंगे,
फिर लम्बी रात के बाद
एक नयी सुबह होगी
और हम
खुली हवा में
ताजगी भरी सांस लेंगे,
और होगा एक नए भारत का निर्माण!
6 comments:
उम्मीद तो कायम रखना ही होगा
सुन्दर रचना
भाई नीलेश जी .
जीवन्त रचना ने देश का चित्र खींच दिया ।
मगर मित्र
एक दिन अवश्य
ज्वालामुखी फटेगा
और गर्म लावा बहेगा,
Bahut hi Sach, shaandaar aur aashavaadi kavita.
Padhkar mazaa aa gaya.
bahut achchha likha hai nilesh ji
achchhi rachna ke liye badhaai kubool karein
aapse mil kar laga ki bharat ko niraash nahi hona chahiye...........use bachaane ki chaah rakhne waale hain abhi uski duniya me.
badiya rachna.....Guwahati me kisi club ya samajik sanstha ke madhyam se kavi sammelan aayojit karne ka karyakram banaiye.....main apne mitra kaviyon sahit aane ko taiyaar hoon....sadhuwaad.....
Post a Comment